Posts tagged ‘मेरी रचनाएं’

काशी पर एक कविता- प्रसन्न वदन चतुर्वेदी

तीन लोक से न्यारी काशी, इसकी अमर कहानी है |
धर्म,कला,साहित्य, चिकित्सा, संस्कृति की राजधानी है |
1.
यहाँ पे बाबा विश्वनाथ हैं, संकटमोचन बसते हैं,
माँ दुर्गा, अन्नपूर्णा जी हैं, भैरव जी भी रहते हैं,
काशी में गंगा जी उत्तरवाहिनी होकर बहती हैं,
है नगरी प्राचीन कई घाटों की निशानी कहती है,
सारनाथ में यहीं बुद्ध ने प्रथम बार उपदेश दिया,
जैन धर्म के पार्श्वनाथ जी ने काशी में जन्म लिया,
रामानंद, कबीर और रैदास यहीं के निवासी थे,
धन्वन्तरि, पतंजलि, ऋषि अगस्त्य यहाँ के वासी थे,
श्री वल्लभ आचार्य, शंकराचार्य, पाणिनि यहाँ रहे,
वेद व्यास,  तुलसी, कबीर ने यहीं पे कितने ग्रन्थ रचे,
रानी लक्ष्मीबाई ने भी काशी में ही जन्म लिया,
झाँसी की रानी बन जिसने जीवन अपना धन्य किया,
सभी तरह के शल्य-क्रिया के प्रथम प्रणेता सुश्रुत थे,
काशी उनकी कर्मभूमि थी आयुर्वेद-चिकित्सक थे,
राजा हरिश्चन्द्र की नगरी, इसका कोई न सानी है……… 
तीन लोक से न्यारी काशी, इसकी अमर कहानी है |

2.
भारतेन्दु श्री हरिश्चन्द्र ने एक नया उत्थान किया,
हिन्दी को इक नई धार दी, एक नई पहचान दिया,
प्रेमचन्द, जयशंकर, देवकीनन्दन, हजारी द्विवेद्वी,
रामचन्द्र शुक्ला, विद्यानिवास, धूमिल और तेग अली,
बलदेव उपाध्याय, क्षेत्रेशचन्द्र, वागीश शास्त्री यहाँ रहे,
काशी की धरती पर ही नज़ीर बनारसी ने शेर कहे,
रामदास, गिरिजा देवी, छन्नू, राजन-साजन मिश्रा,
काशी की धरती से ही इनके सरगम का स्वर है गूंजा,
रविशंकर सितारवादन में तो शहनाई में बिस्मिल्ला,
तबले में गुदई, किशन, अनोखेलाल मिश्र की  ना, धिन, ना;
एन.राजम, ओंकारनाथ की कर्मभूमि ये काशी है,
लालबहादुर शास्त्री जी की जन्मभूमि भी काशी है,
है महामना की धरती ये शिक्षा की नगरी कहलाती,
शिव की नगरी, दीपों का शहर, मंदिर का शहर भी है काशी,
विद्वानों की है ये नगरी, प्राचीनतम निशानी है………. 
तीन लोक से न्यारी काशी, इसकी अमर कहानी है |

 

एक ग़ज़ल-प्रसन्न वदन चतुर्वेदी

प्रस्तुत है मेरी आवाज़ में मेरी ये ग़ज़ल…

जब अपना कोई छल करता…

दिल छलनी-छलनी होता है जब अपना कोई छल करता |
फिर भी नहीं यकीं होता है जब अपना कोई छल करता |

जीवन के झंझावातों में हर गम सह लेते हैं हम सब,
दर्द वो ज्यादा ही होता है जब अपना कोई छल करता |

अम्मा चली गयीं मेरे पापा चले गए

लगभग एक साल के अंतराल पर मैंने अपने माता-पिता दोनों को (24-3-2016 को माँ और 24-5-2017 को पिता को) खो दिया है।  प्रस्तुत है इस समय मेरे मन की भावना (अभी मैंने कोई मात्रा या बहर नही देखा है, वो बाद में देखूँगा) …
अम्मा चली गयीं मेरे पापा चले गए।
दुनिया में मुझको छोड़ अकेला चले गए।
बचपन के लाड़-प्यार वो दुलार अब कहाँ,
देकर वो मुझको दौर सुनहरा चले गए।
वो जब तलक थे दिल से मैं बच्चा ही था अभी,
लेकर ज्यूँ मेरे दिल का वो बच्चा चले गए।
होती है अहमियत किसी की जाने के बाद ही,
अहसास हो रहा है जब वो सहसा चले गए।
अब भी यकीं नही मुझे क्यों हो रहा है ये,
कल तक तो साथ-साथ थे, यूँ कहाँ चले गए।
उनकी कमी खलेगी अब ताउम्र ही मुझे,
अरमान उनके पूरे हों, वो जहाँ चले गए।

एक रचना/ प.धर्मशील चतुर्वेदी जी की जयन्ती पर विशेष

काशी की अमर विभूति प.धर्मशील चतुर्वेदी जी की जयन्ती  पर विशेष…

\”धर्मशील जी व्यक्ति नहीं थे, संस्कृति के संवाहक थे |
काशी की हर एक सभा के आजीवन संचालक थे |
काशी की हर एक सभा में अट्टहास उनका गूँजा,
उनके जैसा जिंदादिल अब और नहीं कोई दूजा,
कला-पारखी, ज्ञानवान थे, निश्छल मानों बालक थे…..
धर्म, कला, साहित्य सभी पर, उनका दखल बराबर था,
न्यायालय या कोई सभा हो सबमे उनका आदर था,
व्यंग्यकार, अधिवक्ता, उम्दा लेखक और विचारक थे…..\”


यही अब दोस्तों की दोस्ती है

एक ग़ज़ल ( \’मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन\’  पर आधारित ) प्रस्तुत है…

यही अब दोस्तों की दोस्ती है |
कभी भी हाल तक पूछा नहीं है |

ठहाके मार के हंसना, बिहंसना
मुझे वो आजतक भूला नहीं है |

बिना बातों के वो बातें बनाना,
उन्ही बातों की अब शायद कमी है |

किसी के पास मंजिल का पता है,
किसी के दिल की दुनिया लुट गयी है |

यही तो ज़िंदगी का फलसफा है,
कहीं खुशियाँ कहीं वीरानगी है |

जिए तो जा रहे हैं ज़िंदगी, पर
ये लगता है कहीं कोई कमी है |

अभी खुशबू नहीं छाई फिजां में,
अँधेरे में अभी तक रौशनी है |

बुरा मत बोलना, सुनना, न कहना
किसी ने खूब ये बातें कही है |

नहीं आता मज़ा जीने में यारों,
बहुत आराम में गर ज़िंदगी है |

ये भला क्यों कभी नहीं होता

एक ग़ज़ल [ \”फाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन\” पर आधारित ] प्रस्तुत कर रहा हूँ | आशा है आप अवश्य पसंद करेंगे……. 

ये भला क्यों कभी नहीं होता |
हर कोई आदमी नहीं होता |

कुछ गलत लोग भी तो होते हैं,
हर कोई तो सही नहीं होता |

जो न सोचा वो बात होती है,
जो भी सोचा वही नहीं होता |

दिल को भी देख लो जरा उसके,
सिर्फ चेहरा हसीं नहीं होता |

क्यों गलत बात को सही कह दें,
हमसे तो बस यही नहीं होता |

कुछ न कुछ की कमी सभी को है,
क्यों कोई भी धनी नहीं होता |

मेरे सपनों का भारत तो भारत ऐसा भारत है

आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर एक देशभक्ति-पूर्ण रचना प्रस्तुत है जिसमें मैंने \’अपना भारत कैसा हो\’ ये परिकल्पना की है :-

हर तरफ अमन है जहाँ हर जगह मुहब्बत है |
मेरे सपनों का तो भारत ऐसा भारत है |

हर पुरुष को काम है मिला, कोई भी बिन काम का नहीं,
हर नारी है पढ़ी-लिखी जैसे कि जरुरत है |

धर्म, जाति, सम्प्रदाय पर अब हम नहीं लड़ रहे,
हर भाषा, उपभाषा की एक जैसी इज्जत है |

चोट एक को भी लगे दर्द तो सभी को हो,
दूसरों का दर्द बांटना अब सभी की आदत है |

आँख ना दिखाए कोई मिल-मिल के काम हो सभी,
देश हो, पड़ोसी हो या कि फिर सियासत हो |

कोख में न बेटियाँ मरें जाए हर जगह बिना डरे,
अपहरण, लूट, छेड़ से सबकी अब हिफाजत है |

आप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

यादों की महफ़िल सजाए बैठा हूँ (संगीतमय)

सभी ब्लॉगर मित्रों को नववर्ष 2016 की शुभकामनाएं…
मित्रों ! यह साल जाने को है और नया साल आने वाला है | आज अपनी एक बहुत पुरानी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ  | आशा है आप इसे भी अवश्य पसंद करेंगे…….

यादों की महफ़िल सजाए बैठा हूँ |
अपनी हर मुश्किल भुलाए बैठा हूँ |

यादें उनकी आती हैं वे आते नहीं,
जिनसे अपना दिल लगाए बैठा हूँ |

जब दुनिया रोती है आंसू बहते हैं,
ऐसे मैं खिलखिलाए बैठा हूँ |

कोई भी आ जाए मैं अपना लूंगा,
सबसे अपना दिल मिलाए बैठा हूँ |

यादों के दम से ही ये अपना जीवन,
जीने के काबिल बनाए बैठा हूँ |
 
इस महफ़िल में सबका आना-जाना है,
मैं तो सबको ही बुलाए बैठा हूँ |

सभी ब्लॉगर मित्रों को नववर्ष 2016 की शुभकामनाएं…

(और ज्यादा…)

तूने आने में की जो देरी तो….(नई रिकार्डिंग)

आज अपने जन्मदिन पर मैं सभी मित्रों को आने का निमंत्रण दे रहां हूँ | अगर…….( शेष YOUTUBE पर सुनिए..) 
तूने आने में की जो देरी तो।
याद आने लगेगी तेरी तो।

मैं इल्जाम तुम्हें ही दूंगा,
मेरी दुनिया हुई अंधेरी तो।

ढूंढता हूँ तुझे मंजिल-मंजिल,
ख़त्म होगी कभी ये फेरी तो।

करूँगा और इन्तज़ार अगर,
जान जाने लगेगी मेरी तो।