काशी पर एक कविता- प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
बिना बातों के वो बातें बनाना,
उन्ही बातों की अब शायद कमी है |
किसी के पास मंजिल का पता है,
किसी के दिल की दुनिया लुट गयी है |
यही तो ज़िंदगी का फलसफा है,
कहीं खुशियाँ कहीं वीरानगी है |
जिए तो जा रहे हैं ज़िंदगी, पर
ये लगता है कहीं कोई कमी है |
अभी खुशबू नहीं छाई फिजां में,
अँधेरे में अभी तक रौशनी है |
बुरा मत बोलना, सुनना, न कहना
किसी ने खूब ये बातें कही है |
नहीं आता मज़ा जीने में यारों,
बहुत आराम में गर ज़िंदगी है |
ये भला क्यों कभी नहीं होता |
हर कोई आदमी नहीं होता |
कुछ गलत लोग भी तो होते हैं,
हर कोई तो सही नहीं होता |
जो न सोचा वो बात होती है,
जो भी सोचा वही नहीं होता |
दिल को भी देख लो जरा उसके,
सिर्फ चेहरा हसीं नहीं होता |
क्यों गलत बात को सही कह दें,
हमसे तो बस यही नहीं होता |
कुछ न कुछ की कमी सभी को है,
क्यों कोई भी धनी नहीं होता |
हर तरफ अमन है जहाँ हर जगह मुहब्बत है |
मेरे सपनों का तो भारत ऐसा भारत है |
हर पुरुष को काम है मिला, कोई भी बिन काम का नहीं,
हर नारी है पढ़ी-लिखी जैसे कि जरुरत है |
धर्म, जाति, सम्प्रदाय पर अब हम नहीं लड़ रहे,
हर भाषा, उपभाषा की एक जैसी इज्जत है |
चोट एक को भी लगे दर्द तो सभी को हो,
दूसरों का दर्द बांटना अब सभी की आदत है |
आँख ना दिखाए कोई मिल-मिल के काम हो सभी,
देश हो, पड़ोसी हो या कि फिर सियासत हो |
कोख में न बेटियाँ मरें जाए हर जगह बिना डरे,
अपहरण, लूट, छेड़ से सबकी अब हिफाजत है |
आप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं…
सभी ब्लॉगर मित्रों को नववर्ष 2016 की शुभकामनाएं…
मैं इल्जाम तुम्हें ही दूंगा,
मेरी दुनिया हुई अंधेरी तो।
करूँगा और इन्तज़ार अगर,
जान जाने लगेगी मेरी तो।
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