Archive for the ‘गीत’ Category

मतदान कीजिए/प्रांचन प्रणव चतुर्वेदी

इस चुनाव के मौसम में एक सन्देश अपने बेटे की आवाज़ में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसे आप YOUTUBE पर सुनने और Subscribe का कष्ट करें…

मतदान कीजिए सभी मतदान कीजिए
इस लोकतंत्र पर्व का सम्मान कीजिए

संसद में जो भी जाए वो आदमी अच्छा हो,
हर शख्स से ये आप आह्वान कीजिए

मतदान करना है जरूरी दान की तरह,
किसी पात्र व्यक्ति को ही ये दान कीजिए

अपराधी आ रहे हैं राजनीति में बहुत,
पूरे न आप उनके अरमान कीजिए

A love song-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो

मित्रों ! नववर्ष की पहली सौगात के रूप में यह प्रेमगीत प्रस्तुत कर रहा हूँ | आशा है हमेशा की तरह आप इसे भी पसंद करेंगे…..

इस रचना का असली आनंद Youtube पर सुन कर ही आयेगा, इसलिए आपसे अनुरोध है की आप मेरी मेहनत को सफल बनाएं और वहां इसे जरूर सुनें…

कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो।
चाँदनी रात है, ऐसे चुप ना रहो। 

हर जगह भीड़ है हर जगह लोग हैं,
ऐसी तनहाई मिलती है जल्दी नहीं;
जहाँ कोई न हो जहाँ कोई न हो……..
चाँदनी रात है, ऐसे चुप ना रहो………

बडी़ मुश्किल से फ़ुरसत के पल आते हैं,
होके चुप इन पलों को न जाया करो;
प्यार के इस समुन्दर में आओ बहो……
चाँदनी रात है, ऐसे चुप ना रहो………..

लब अगर बात करने से कतरा रहे,
बात करने की तरकीब यूं सीख लो;
अपनी नज़रों से मेरी नज़र में कहो……
चाँदनी रात है, ऐसे चुप ना रहो…………

अगर गीत पसंद आया तो यूट्यूब पर मुझे जरूर Subscribe और Like करें…

अमर गायक मुकेश और मेरा संगीत

         दोस्तों ! मैं प्रारम्भ से ही मुकेश का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूँ | बल्कि ये कहिये की मेरी संगीत में रूचि ही मुकेश जी की वजह से प्रारम्भ हुई | एक बार बचपन में उनका गीत रेडियो पर सुना-“जाने चले जाते हैं कहाँ” और अगले ही पल जब उद्घोषक ने ये कहा कि मुकेश जी की पुण्यतिथि पर यह गीत प्रसारित हो रहा है तो मेरे बदन में सिहरन-सी दौड़ गयी थी | तभी मैंने महसूस किया कि वह व्यक्ति जो अब ज़िंदा नहीं है, अपनी आवाज़ के रूप में कितना हमारे करीब है | सच पूछिए तो तभी से संगीत मुझे लुभाने लगा था | अपने पिताजी के डर से और माँ के सहयोग से मैंने चोरी-छिपे बनारस के बुलानाला में स्थित “गुप्ता-संगीतालय” से हारमोनियम और गिटार सीखा | फिर दो साल संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प० जमुना प्रसाद मिश्र जी से तबला तथा प० जालपा प्रासाद मिश्र जी से गायन सीखा | एल-एल-बी० करने  के कारण गायन अधूरा रहा पर बाद में मैंने संगीत में अपना सीखना जारी रखा, हालांकि यह क्रमबद्ध नहीं हो पाया | संगीत से दूर रहना मुश्किल था, शायद इसीलिये बाद में संगीत की और दो उपाधियाँ मैंने ली |

       मुकेश जी के प्रभाव से संगीत से जुड़ा, इसलिए मैं उनके गीत खूब गाता और गुनगुनाता रहता था | उन दिनों मैं अक्सर मुंशी-घाट पर गर्मियों में नहाने जाया करता था, जहाँ देर तक मैं गंगा जी में नहाता और मुकेश के गीत गाता रहता था | उनके गीतों की और कई खूबसूरत यादें मेरे साथ जुड़ी हुई हैं जिन्हें मैं बाद में आपसे जरूर बताना चाहूँगा | 

भारत माँ हम तेरे बच्चे

स्वतंत्रता-दिवस पर देशभक्ति पर आधारित एक बालगीत प्रस्तुत कर रहा हूँ…

भारत माँ हम तेरे बच्चे,आज शपथ ये खायेंगे |
वक्त पड़ा तो तेरी खातिर, सर को भी कटायेंगे |

हम तेरी गोदी में रहते, हँसते, खाते, पीते हैं |
तेरी ममता की छाया में, हम सारे ही जीते हैं |
तूने हमें आज़ादी दी है, जीवन में कुछ करने की ;
तूने हमें आज़ादी दी है, जैसे चाहे रहने की |
अपनी इस आज़ादी को हम , कैसे भला भुलायेंगे….
वक्त पड़ा तो तेरी खातिर, सर को भी कटायेंगे |

चाहे राम हो  कृष्ण हो चाहे, बुद्ध, महावीर, साईं हों |
नानक, तुलसी, सूरदास हों, मीरा, लक्ष्मीबाई हों |
राजगुरु, सुखदेव, भगतसिंह, नेहरु, गांधी, आज़ाद हों |
तेरी माटी में सब जन्मे, हम भी इनके बाद हों |
अपने कर्मों से हम इनमें, अपना नाम लिखायेंगे |
वक्त पड़ा तो तेरी खातिर, सर को भी कटायेंगे |

 सभी को स्वतंत्रता-दिवस पर  बहुत बहुत बधाई…

भूलने वाले मुझे याद कर

ब्लागजगत के सभी नये -पुराने साथियों को नमस्कार। कहीं आप मुझे भूल तो नहीं गये। अगर ऐसा है तो …………

भूलने वाले मुझे याद कर, भूलने वाले मुझे याद आ।
तू मेरे दिल में बस कर, मुझे पने दिल में बसा।


ये जो तनहाई है मेरी दुश्मन ये तुमको भी सताती होगी,
मैं इधर जब तड़पता हूँ इतना ये तुमको भी तड़पाती होगी,
अब यही तू इक उपाय कर और तनहाइयों को भगा………


है तुमको भी मेरी जरूरत और तू भी जरूरत है मेरी,
मैं हूँ तेरे हाथ की लकीरें और तू ही किस्मत है मेरी,
हाथ में हाथ फिर रख दे और सोई किस्मत को जगा……


बाकी पंक्तियाँ आप के कमेन्ट्स के बाद………..

प्यार तब और बढ़ा

मित्रों!अपने तीन ब्लाग मेरी गज़लें,मेरे गीत और रोमांटिक रचनायें को इस एक ही ब्लाग में समेटने के बाद मैंने रोमांटिक रचनायें कम ही पोस्ट की है । इस बार एक गीत प्रस्तुत है-


प्यार तब और बढ़ा और बढ़ा और बढ़ा,
जब लगाये गये पहरे प्यार के ऊपर…..

कोई अनारकली दीवार में चुनवाई गई,
कोई लैला कहीं यूं ही तड़पाई गई,
यूं सरेआम जमाने में रुसवाई हुई,
सितम जो ढाए गए कर सके कोई असर
प्यार तब और बढ़ा और बढ़ा और बढ़ा…..

कहीं पे कैस कोई प्यार में दीवाना हुआ,
कहीं रांझा कोई हीर का निशाना हुआ,
और हर प्यार के खिलाफ़ ये जमाना हुआ,
मर गये इश्क के मारे ये सितम सहसह कर
प्यार तब और बढ़ा और बढ़ा और बढ़ा……..

गीत/मुझे याद आ रहे हैं,वो ज़िन्दगी के दिन

आज मैं एक ऐसा गीत यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ जो कई मायनों में एकदम अलग है।इस गीत की खा़सियत यह है कि पूरे जीवन का वर्णन एक गीत में ही हो जाता है।है अनोखी बात!मुझे यकीन है कि आप को मेरा यह गीत जरूर पसन्द आयेगा क्योंकि यह आप के जीवन की कहानी भी तो बयां कर रहा है………

मुझे याद आ रहे हैं ,वो ज़िन्दगी के दिन।
कुछ मेरे ग़म के दिन,कुछ मेरी खुशी के दिन।

बचपन के खेल सारे, नानी की वो कहानी;
ससुराल जो गई है, उस बहन की निशानी;
झगडा़ करना,रोना और फिर हसीं के दिन……

कुछ और बडा़ होना,कुछ और सोचना;
ख्वाबों में,खयालों में; आकाश चूमना;
आज़ाद हर तरह से, कुछ बेबसी के दिन……

गप-शप वो दोस्तों के,और हम भी उसमें शामिल,
वो शोर वो ठहाके,यारों की हसीं महफ़िल;
वो किताब-कापियों के,वो दिल्लगी के दिन…..

कुछ उम्र बढी़ और, नौजवान हम हुए;
कितनी ही हसीनों के,अरमान हम हुए;
जब सोच में तब्दीली हुई उस घडी़ के दिन…..

अब ख्वाब में आने लगे,जुल्फ़ों के वो साये;
फिर जो भी हुआ उसको,अब कैसे हम बतायें;
दीवाने हो गये हम,दीवानगी के दिन…..

फिर जैसे बहार आई,घर मेरा खिल गया;
बावस्ता उम्र भर के,इक दोस्त मिल गया;
फिर फूल कुछ खिले और, नई रौशनी के दिन…..

बच्चे बडे़ हुए अपनी उम्र बढ़ गई;
चेहरे पे झुर्रियों की,सौगात चढ़ गई;
हुए खत्म धीरे-धीरे,जीवन की लडी़ के दिन…..

गीत/ हर रोज़ कुआँ खोदना

हर रोज़ कुआँ खोदना फ़िर प्यास बुझाना ,
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी या एक सजा है।
जाना जहाँ से फिर वही वापस भी लौटना,
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी या एक सजा है।

ज्यूं हर खुशी के घर का पता भूल गया हूँ,
मैं मुद्दतों से खुल के हंसना भूल गया हूँ,
रोना,तरसना छोटीछोटी चीज के लिए,
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी या एक सजा है।

हर सुबह को जाते हैं और शाम को आते,
हर रोज़ एक जैसा वक्त हम तो बिताते,
जीवन में नया कुछ नहीं इक बोझ सा ढोना,
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी या एक सजा है।

बस पेट के लिये ही जिए जा रहे हैं हम,
कुछ और नहीं कर सके इस बात का है ग़म,
कुछ दे सके हम नया तो खुद ही सोचना,
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी या एक सजा है।

गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी/वैसे तो दुनिया में अक्सर

वैसे तो दुनिया में अक्सर,सूरत की कीमत होती है।
लेकिन सबसे अच्छी सूरत,इन्सान की सीरत होती है।

कभी तन सुन्दर मिल जाता है तो मन सुन्दर ये नहीं होता,
कभी मन सुन्दर जो होता है तो तन सुन्दर ये नहीं होता,
झूठी ये बात नहीं अक्सर, ये बात हकीकत होती है……..
हाँ हाँ सबसे अच्छी सूरत,इन्सान की सीरत होती है……..

शोहरत भी मिलती है जो अगर मन के ही अच्छे होने से,
सच्ची खुशियाँ भी मिलती हैं मन के ही सच्चे होने से,
दौलत दुनिया की सबसे बड़ी मन की ये मिल्कियत होती है..
सबसे अच्छी सूरत यारों इन्सान की सीरत होती है………..

जीवन अच्छा जो बिताना हो औरों को कभी न सताना तुम,
हो सके तो खुद पर भी हंसकर औरों को खूब हँसाना तुम,
जीवन अच्छा कट जाता है जब अच्छी नीयत होती है…..
अच्छी सबसे अच्छी सूरत,इन्सान की सीरत होती है………

हास्यगीत/जोरू का गुलाम

भयवश नहीं परिस्थितिवश मैं करता हूँ सब काम।
फ़िर भी लोग मुझे कहते हैं जोरू का गुलाम…….।

सुबह अगर बीबी सोई हो, चाय बनाना ही होगा;
बनी चाय जब पीने को तब उसे जगाना ही होगा;
चाय बनाना शौक है मेरा हो सुबह या शाम…….
फ़िर भी लोग मुझे कहते हैं जोरू का गुलाम…….।

मूड नहीं अच्छा बीबी का फ़िर पति का फ़र्ज है क्या;
बना ही लेंगे खाना भी हम आखिर इसमें हर्ज है क्या;
इसी तरह अपनी बीबी को देता हूँ आराम…..
फ़िर भी लोग मुझे कहते हैं जोरू का गुलाम…….।

वो मेरी अर्धांगिनी है इसमें कोई क्या शक है;
इसीलिये तनख्वाह पे मेरे केवल उसका ही हक है;
मेरा काम कमाना है बस खर्चा उसका काम…..
फ़िर भी लोग मुझे कहते हैं जोरू का गुलाम…….।