आंधियाँ भी चले और दिया भी जले
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आंधियाँ भी चले और दिया भी जले ।
होगा कैसे भला आसमां के तले ।
अब भरोसा करें भी तो किस पर करें,
अब तो अपना ही साया हमें ही छले ।
दिन में आदर्श की बात हमसे करे,
वो बने भेड़िया ख़ुद जंहा दिन ढले ।
आवरण सा चढ़ा है सभी पर कोई,
और भीतर से सारे हुए खोखले ।
ज़िन्दगी की खुशी बांटने से बढ़े ,
तो सभी के दिलों में हैं क्यों फासले ।
कुछ बुरा कुछ भला है सभी को मिला ,
दूसरे की कोई बात फ़िर क्यों खले ।
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