मित्रों ! एक पूर्वप्रकाशित रचना अपनी आवाज में प्रस्तुत कर रहा हूँ , इस रचना का संगीत-संयोजन और चित्र-संयोजन भी मैंने किया है | आप से अनुरोध है कि आप मेरे Youtube के Channel पर भी Subscribe और Like करने का कष्ट करें ताकि आप मेरी ऐसी रचनाएं पुन: देख और सुन सकें | आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि आप इस रचना को अवश्य पसंद करेंगे |
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जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ।
मैं तो केवल इतना सोचूँ।
मैं तो केवल इतना सोचूँ।
बालिग होकर ये मुश्किल है,
आओ खुद को बच्चा सोचूँ।
सोच रहे हैं सब पैसों की,
लेकिन मैं तो दिल का सोचूँ।
बातों की तलवार चलाए,
कैसे उसको अपना सोचूँ।
ऊपर वाला भी कुछ सोचे,
मैं ही क्योंकर अपना सोचूँ।
जो भी होगा अच्छा होगा,
मैं बस क्या है करना सोचूँ।
Comments on: "जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ /pbchaturvedi" (41)
बेहद खुबसूरत रचना और लाजबाब लगा स्वर में सुनना
राखी की असीम शुभ कामनायें
पहले तो आपको राखी के अवसर पर बहुत सारी शुभकामनाएं! बहुत अच्छा लगा यहाँ तक आकर! बेहद सुन्दर प्रस्तुति………..
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, स्वर तो लाजबाब है.
सुन्दर ग़ज़ल और गायकी ,बहुत- बहुत बधाई आपको
अच्छी रचना !!
आपकी यह रचना पढ़कर सुनकर अच्छी लगी वाकई 🙂
वाह!
वाह बेहतरीन रचना की खुबसूरत प्रस्तुति … बधाई एवं शुभकामनाये 🙂
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल और उसकी लाज़वाब प्रस्तुति…
वाह !!! बहुत सुन्दर रचना —-
जीवन का सार्थक सच कहती हुई —
बधाई —-
आग्रह है —-
आवाजें सुनना पड़ेंगी —–
सुंदर प्रस्तुति…
दिनांक 14/08/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है…
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है…
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें…
सादर…
कुलदीप ठाकुर
वाह वाह ! सचमुच मज़ा आ गया !
सुंदर रचना के लिए, बधाई आपको !
वाह बहुत सुंदर ।
ऊपर वाला भी कुछ सोचे,
मैं ही क्योंकर अपना सोचूँ।
अंततः सब ऊपर वाले के हाथ में ही होता है….. इसलिए हम भी सिर्फ अपने लिए ही क्यों सोचें……बहुत सुन्दर सकारात्मक प्रस्तुति
बातों की तलवार चलाए,
कैसे उसको अपना सोचूँ।
बहुत खूबसूरत शब्द
आपकी आवाज़ भी चार चाँद लगा रही है इस खूबसूरत ग़ज़ल में …
मज़ा आया बहुत ही …
खूबसूरत गज़ल, सुंदर गायिकी. आपने ने इसे बहुत अच्छे ढंग से संगीतबद्ध किया है…बधाई!
आपका सुझाव बेहद पसंद आया. यदि ऐसा कुछ हो पाया तो यकीनन मुझे बेहद ख़ुशी होगी…
स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ !
भावपूर्ण रचना।
ऊपर वाला भी कुछ सोचे,
मैं ही क्योंकर अपना सोचूँ।
वाह बेहतरीन
सुन्दर ग़ज़ल और गायकी
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
उम्दा गजल…. बहुत खूब
bahut sundar bhav -abhivyakti
बहुत खुबसुरत …..सुनने में और खुबसुरत लगी
बहुत सुन्दर गजल, दिल की गहराई का वर्णन
बहुत बढ़िया
Sundar rachna.
वाह बहुत सुन्दर लिखा पंडित जी । बधाई।
बहुत बढ़िया!
सुन्दर शब्दों में सम्प्रेषणीय गज़ल । प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
बढिया भाई
ऊपर वाला भी कुछ सोचे,
मैं ही क्योंकर अपना सोचूँ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
Swar badh sundar rachna
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल और धुन, बधाई.
kya baat
बहुत ही सुंदर , प्रसन्न सर धन्यवाद !
I.A.S.I.H – ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सुन्दर ग़ज़ल एवं आवाज़ ….पर
बालिग होकर ये मुश्किल है, .. पर सोचना तो वालिग़ होकर ही पड़ता है …नाचापन में कौन सोचता है…….
—–ऊपर वाला तो सदा सोच विचार कर ही करता है …सोचना तो नानाव को ही है उसी को….
जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ। …
नाचापन = बचपन ……नानाव = मानव
वाह … मज़ा आ गया पढ़ कर … दुगना मजा आया सुन कर …
हा शेर लाजवाब है …